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निजी विद्यालयों और किताब विक्रेताओं का गठजोड़: कमीशन का खेल जारी

बलरामपुर जिला संवाददाता आशीष कसौधन

उतरौला/बलरामपुर। निजी विद्यालयों में दाखिला सत्र शुरू होते ही तहसील गेट के सामने स्थित विद्यार्थी पुस्तक भंडार और अन्य किताब विक्रेताओं की दुकानें विद्यार्थियों और उनके अभिभावकों से खचाखच भरी नजर आ रही हैं। हर साल की तरह इस बार भी किताबों और स्टेशनरी के कारोबार में कमीशन का खेल चर्चा में है। खास बात यह है कि ये दुकानें विद्यालयों से संबद्ध पुस्तकें, ड्रेस और अन्य सामग्री बेचने के लिए जानी जाती हैं। इन दुकानों पर अभिभावकों द्वारा केवल विद्यालय और कक्षा का नाम बताने पर पहले से तैयार किताबों का सेट पकड़ा दिया जाता है। यह सेट केवल उसी विद्यालय के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध होता है। कुछ दुकानों पर स्टेशनरी भी साथ में अनिवार्य रूप से बेची जाती है। मजबूरी में अभिभावक इन दुकानों से ही सामग्री खरीदने को बाध्य हैं। सूत्रों के अनुसार, इन दुकानों का सीधा संबंध निजी विद्यालयों से होता है। ये विक्रेता विद्यालय संचालकों के वेंडर के रूप में कार्य करते हैं। हर बिक्री पर विद्यालय संचालकों को कमीशन दिया जाता है। इसके साथ ही किताबों की प्रिंट रेट पर जीएसटी भी अभिभावकों से वसूला जा रहा है, जबकि उन्हें पक्के बिल देने के बजाय साधारण कागज पर कच्चा बिल दिया जाता है।स्थिति की गंभीरता को देखते हुए स्थानीय प्रशासन और शिक्षा विभाग की निष्क्रियता पर सवाल उठाए जा रहे हैं। यह सिलसिला हर साल दोहराया जाता है, लेकिन अब तक इस पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। यह मामला न सिर्फ शिक्षा विभाग की निष्क्रियता उजागर करता है, बल्कि निजी विद्यालयों और किताब विक्रेताओं के बीच के गठजोड़ की गहराई को भी चिन्हित करता है। अभिभावकों की कठिनाइयों को कम करने और इस व्यवस्था पर लगाम लगाने के लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत है।

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